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जब मेकर्स ने मनीषा कोइराला से की थी Divya Dutta की तुलना, बोलीं- ‘उस छवि को तोड़ना चुनौती…’

  इस साल एक्ट्रेस दिव्या दत्ता ने अभिनय करियर के 30 वर्ष पूरे कर लिए हैं। जब दिव्या ने इंडस्ट्री में कदम रखा था तो उन्हें लग रहा था कि वह यहां आएंगी और छा जाएंगी। आज दिव्या व्यस्त रहने से ज्यादा अच्छी फिल्मों की विरासत छोड़कर जाना चाहती हैं। वो अपने सफर व आगामी फिल्मों पर दिव्या ने प्रियंका सिंह के साथ साझा की दिल की बातें…

फिल्म इंडस्ट्री में 30 साल का सफर तय करना कैसा रहा है?

मैं 17 वर्ष की थी, जब इंडस्ट्री में आई थी, पता नहीं था कि क्या करने वाली हूं। गलतियां कीं, उनसे सीखा। जब मैं आई थी, तो मुझे बताने वाला कोई नहीं था कि क्या सही है, क्या गलत या तुम्हारी लॉचिंग फलां फिल्म से होगी। सपना लेकर आई थी कि शाह रुख खान या सलमान खान के साथ काम करूंगी, फिर मुझे नए कलाकारों के साथ लव स्टोरी वाली फिल्में मिल गईं। फिर मल्टीस्टारर फिल्म ‘सुरक्षा’ की। वह फिल्म चली और मुझे वैसी ही फिल्में ऑफर होने लगीं। मेकर्स कहते थे कि वो लड़की जो मनीषा कोइराला जैसी दिखती है, उसे बुलाओ।

यानी उस छवि को तोड़ना आसान नहीं था…

बिल्कुल। उस छवि को तोड़ना चुनौती बन गई। मैं पंजाब से बेस्ट एक्टर का अवार्ड लेकर आई थी। मुझे लगा था कि यहां तो सब लूट लूंगी, छा जाऊंगी, लेकिन मां के सिवाय किसी को नहीं पता था कि मैं प्रतिभाशाली हूं। तो जहां जो काम मिला, शिद्दत से करती गई। मां से सीखा है कि काम इतना अच्छा करो कि लोग तुम्हारे बारे में बात करें। धीरे-धीरे ऐसा होना शुरू हुआ। ‘वीर जारा’ हिट हुई, तो वैसे ही प्रस्ताव मिलने लगे। आपको लगातार स्वयं को ढूंढ़ना पड़ता है। जब आज लोग कहते हैं कि अगर तुम फिल्म में हो, तो काम करने में मजा आएगा, तो अच्छा लगता है।

शाह रुख खान और सलमान खान के साथ शुरुआत न होने का दुख रह गया?

उस वक्त बुरा लगा था, लेकिन जब मैंने कुछ सालों के बाद अपना करियरग्राफ देखा तो लगा कि कुछ अलग हुआ है। मैं केवल हीरोइन बनने के लिए इस इंडस्ट्री में नहीं आई थी। मुझे तो एक्टर बनना था। अब चाहे स्टार एक्टर कह लो, कोई अपरंपरागत हीरोइन कह लो। हाल ही मैं साउथ फिल्म इंडस्ट्री में काम करके आई हूं। मैं मजबूत पात्रों को ही निभाना चाहती हूं। मैं वहीं चुन रही हूं, जो मुझे बच्चे की तरह उत्सुक रखे। स्वयं को लोगों के नजरिये से अलग साबित करने की भूख हमेशा बरकरार रहेगी।

आपका कोई मार्गदर्शक नहीं रहा है, लेकिन कोई तो होगा, जिसकी बातों से करियर में फर्क पड़ा होगा?

मैं बहुत सारी फिल्में कर रही थी, लेकिन निर्माता आदित्य चोपड़ा की एक बात याद रह गई है, उन्होंने पूछा था कि आप इतनी सारी फिल्में क्यों कर रही हैं। मैंने कहा कि मुझे व्यस्त रहना अच्छा लगता है। तब उन्होंने कहा था कि व्यस्त रहने की जरूरत नहीं है, ऐसे काम करो कि अपने पीछे एक विरासत छोड़ जाओ। उस बात से झटका लगा। तब कई बड़ी फिल्में छोड़ दीं, कुछ छोटी फिल्में कीं। पीछे मुड़कर देखती हूं तो स्वयं पर गर्व होता है।

क्या इस सफर में कभी किसी हमसफर की आवश्यकता महसूस नहीं हुई?

मैं ज्यादा ही रोमांटिक इंसान रही हूं। मेरे लिए प्यार अहम रहा है। हां, रिश्ते भी बने, लेकिन कई बार आपको वो लोग नहीं मिल पाते, जो आपके जीवनसाथी बन पाते या उसके काबिल हों। वैसे भी मेरा मानना है कि हमें किसी पर भावनात्मक तौर पर निर्भर नहीं होना चाहिए। हर किसी का प्यार करने का अपना तरीका होता है। मेरे जितने भी रिश्ते बने थे, मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा, पहले स्वयं से प्यार बिल्कुल नहीं था, अब है। अब मैं जैसे भी अपने जीवन में आगे बढ़ रही हूं, वह मुझे पसंद है।

आपके भीतर एक लेखिका भी है। वह इन दिनों कहां गायब है?

(हंसते हुए) वह मसरूफ सी चल रही है। थोड़ी सी आलसी हो गई है, लिखने के लिए बैठती है, फिर कहती है कि चल छोड़ यार, कल लिखेंगे। मैं डेडलाइंस पर काम करने वाली महिला हूं। मैं बच्चों की कहानियां लिखने वाली हूं। देखते हैं कब तक होगा, फिलहाल तो वेब सीरीज ‘बंदिश बैंडिट्स 2’ के अलावा विक्की कौशल के साथ फिल्म ‘छावा’ और ‘एक रुका हुआ फैसला’ फिल्म की रीमेक में व्यस्त हूं।

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